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Bilaspur News: ममता का पर्व: जीवित्पुत्रिका व्रत में संतान की सलामती की अरदास
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत का आयोजन किया जाता है। इस साल 14 सितम्बर को यह व्रत किया जाएगा। यह व्रत माताएं अपनी संतान की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना के लिए करती हैं।

BILASPUR NEWS. भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत का आयोजन किया जाता है। इस साल 14 सितम्बर को यह व्रत किया जाएगा। यह व्रत माताएं अपनी संतान की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना के लिए करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान पर आने वाले संकट टल जाते हैं और उन्हें लंबा जीवन प्राप्त होता है।
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आचार्य संदीप तिवारी ने बताया कि इस दिन व्रती महिलाएं सूर्योदय से पूर्व स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं और दिनभर निर्जला उपवास करती हैं। संध्या के समय माता जीवित्पुत्रिका, भगवान शिव-पार्वती और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

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पूजा विधि में यह किया जाता है:
-पूजा स्थल पर कलश स्थापित कर उसमें जल, सुपारी, दूर्वा, अक्षत और लाल वस्त्र रखा जाता है।
-दीये और धूप जलाकर भगवान शिव, माता पार्वती और माता जीवित्पुत्रिका की आराधना की जाती है।
-विशेष रूप से गेंदा और दूर्वा से माता को सजाया जाता है।
-व्रती महिलाएं संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए मंत्रों का जाप करती हैं।
-कथा श्रवण के बाद माताएं सात बार संतान के नाम का संकल्प दोहराती हैं।
-पूजा में मौसमी फल, गुड़, तिल, रोली, चावल और हल्दी का विशेष प्रयोग होता है।
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अगले दिन सूर्योदय के बाद स्नान कर अन्न-जल ग्रहण करके पारण किया जाता है और व्रत पूरा होता है।
आचार्य संदीप तिवारी ने कहा कि यह व्रत मातृत्व और संतान के बीच के अटूट प्रेम का प्रतीक है और भारतीय संस्कृति में इसका विशेष महत्व है।