छत्तीसगढ़

Bilaspur News:पत्नी द्वारा झूठे आरोप, जबरन गर्भपात और बच्चे से दुर्व्यवहार, हाईकोर्ट ने कहा यह मानसिक-शारीरिक क्रूरता

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पति द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों को सही ठहराते हुए दुर्ग फैमिली कोर्ट के आदेश को पलट दिया है। अदालत ने कहा कि पत्नी द्वारा बिना सहमति गर्भपात कराना, बार-बार झूठे आरोप लगाना और बच्चे के साथ दुर्व्यवहार करना मानसिक और शारीरिक क्रूरता की श्रेणी में आता है।

BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पति द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों को सही ठहराते हुए दुर्ग फैमिली कोर्ट के आदेश को पलट दिया है। अदालत ने कहा कि पत्नी द्वारा बिना सहमति गर्भपात कराना, बार-बार झूठे आरोप लगाना और बच्चे के साथ दुर्व्यवहार करना मानसिक और शारीरिक क्रूरता की श्रेणी में आता है।

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जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस ए.के. प्रसाद की डिवीजन बेंच ने पति की अपील मंजूर करते हुए पत्नी को एकमुश्त 25 लाख रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश जारी किया। कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्ष 2014 से अलग रह रहे हैं और अब रिश्ता पूरी तरह टूट चुका है तथा इसे बचाने की कोई संभावना नहीं है।

कोर्ट ने कहा—10 साल से अधिक अलगाव, विवाद और मध्यस्थता में असफलता बताती है कि विवाह खत्म हो चुका

अदालत ने गवाहों के बयान, दस्तावेजों और सुप्रीम कोर्ट के समर घोष बनाम जया घोष प्रकरण का हवाला देते हुए कहा कि पत्नी ने पति और उसके परिवार पर लगातार झूठे आरोप लगाए, पति के मां-बाप के अंतिम संस्कार और सर्जरी जैसे अवसरों पर सहभागिता नहीं निभाई, और शादी के बाद से ही विवाद लगातार बढ़ते गए। कोर्ट ने माना कि पत्नी का परिवार और बच्चे के प्रति व्यवहार मानसिक-शारीरिक क्रूरता की श्रेणी में आता है।

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पति के आरोप—दो बार बिना बताए गर्भपात, बच्चे को मारना और बाथरूम में बंद करना

पति ने कोर्ट में कहा कि पत्नी—खुद गर्भपात की गोलियाँ खाती थी, दो बार बिना बताए गर्भपात करा लिया, बच्चे को बेवजह पीटती और कभी-कभी बाथरूम में बंद कर देती थी, झूठी पुलिस रिपोर्ट दर्ज करवाती थी, और एक बार उसने चाकू व लोहे की रॉड से हमला करने की कोशिश भी की।

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फैमिली कोर्ट ने दिया था उल्टा फैसला

20 दिसंबर 2022 को दुर्ग फैमिली कोर्ट ने पत्नी की याचिका स्वीकार कर दांपत्य बहाली का आदेश दिया था। पति ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसके बाद जांच-पड़ताल और सुनवाई के आधार पर अदालत ने फैमिली कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया।

हाईकोर्ट का यह फैसला वैवाहिक अधिकारों, सहमति और “क्रूरता” की कानूनी परिभाषा को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय माना जा रहा है।

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