छत्तीसगढ़

Bilaspur News: हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: संविलयन से पहले सरकारी सेवक नहीं थे शिक्षाकर्मी, 1188 शिक्षकों की क्रमोन्नति याचिकाएं खारिज

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य के 1188 शिक्षकों की याचिकाएं खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि संविलयन (1 जुलाई 2018) से पहले पंचायत विभाग में पदस्थ शिक्षाकर्मियों को सरकारी सेवक नहीं माना जा सकता, इसलिए उन्हें 10 वर्ष की सेवा पूर्ण करने के आधार पर क्रमोन्नति का लाभ देने की पात्रता नहीं बनती।

BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य के 1188 शिक्षकों की याचिकाएं खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि संविलयन (1 जुलाई 2018) से पहले पंचायत विभाग में पदस्थ शिक्षाकर्मियों को सरकारी सेवक नहीं माना जा सकता, इसलिए उन्हें 10 वर्ष की सेवा पूर्ण करने के आधार पर क्रमोन्नति का लाभ देने की पात्रता नहीं बनती।

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जस्टिस एन.के. व्यास की एकलपीठ ने कहा कि शिक्षाकर्मी ग्रेड-3, ग्रेड-2 और ग्रेड-1 की नियुक्ति पंचायत राज अधिनियम 1993 के तहत हुई थी, और उनकी सेवा व नियंत्रण जनपद पंचायत के अधीन था। ऐसे में संविलयन से पहले उन्हें राज्य शासन का नियमित सरकारी सेवक नहीं माना जा सकता।

इसी आधार पर अदालत ने माना कि शिक्षक 10 मार्च 2017 को जारी क्रमोन्नति संबंधी सर्कुलर के लिए आवश्यक मानदंड पूरे नहीं करते, क्योंकि उनकी सेवा अवधि की गणना केवल 1 जुलाई 2018 से—अर्थात संविलयन की तारीख से—ही मानी जा सकती है। इसलिए वे 10 वर्ष की अनिवार्य योग्यता भी पूर्ण नहीं कर पाते। कोर्ट ने शासन के इन तर्कों को सही माना।

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संविलयन नीति में साफ है—पहले की सेवा पर कोई लाभ नहीं

शासन ने कोर्ट में यह भी स्पष्ट किया कि 30 जून 2018 की संविलयन नीति में साफ लिखा है कि पूर्व शिक्षाकर्मी केवल संविलयन की तारीख से ही शासकीय शिक्षक माने जाएंगे। इससे पहले की सेवा को आधार बनाकर न तो वेतनवृद्धि, न वरिष्ठता और न ही क्रमोन्नति का कोई दावा किया जा सकता है।

याचिकाकर्ताओं की दलील पर कोर्ट ने क्या कहा?

याचिकाकर्ताओं ने अपने पक्ष में ‘सोना साहू केस’ का हवाला दिया, लेकिन कोर्ट ने कहा कि उस मामले की परिस्थितियाँ पूरी तरह अलग थीं, इसलिए समानता का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता।

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राज्यभर के शिक्षकों की उम्मीदों को बड़ा झटका

1188 शिक्षकों ने हाईकोर्ट में याचिकाएं लगाकर 10 साल की सेवा पूर्ण होने पर क्रमोन्नति का लाभ देने की मांग की थी, लेकिन हाईकोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि संविलयन से पहले की पंचायत-सेवा को सरकारी सेवा नहीं माना जाएगा। इस फैसले के बाद राज्यभर के शिक्षाकर्मियों में निराशा का माहौल है, जबकि शासन पक्ष ने इसे नीति के अनुरूप सही बताया है।

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