छत्तीसगढ़
Bilaspur Highcourt News: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पुलिस हिरासत में मौत मामले में सुनाया बड़ा फैसला, उम्रकैद घटाकर 10 साल की सजा, अदालत ने मंशा नहीं मानते हुए दी आंशिक राहत
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने जांजगीर-चांपा जिले के चर्चित पुलिस कस्टडी डेथ केस में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि पुलिस हिरासत में हुई मौत केवल एक अपराध नहीं बल्कि लोकतंत्र और मानव अधिकारों पर गंभीर आघात है।

BILASPUR HIGH COURT NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने जांजगीर-चांपा जिले के चर्चित पुलिस कस्टडी डेथ केस में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि पुलिस हिरासत में हुई मौत केवल एक अपराध नहीं बल्कि लोकतंत्र और मानव अधिकारों पर गंभीर आघात है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि समाज के रक्षक ही भक्षक बन जाएं, तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए गहरा खतरा बन सकता है। इसी आधार पर न्यायमूर्ति संजय के अग्रवाल और न्यायमूर्ति दीपक कुमार तिवारी की पीठ ने दोषी थाना प्रभारी सहित चार पुलिसकर्मियों को दी गई उम्रकैद की सजा को कम करते हुए अब 10 साल के कठोर कारावास में बदल दिया।
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गैरइरादतन हत्या मानते हुए दी गई सजा में राहत
कोर्ट ने अपने फैसले में माना कि आरोपी पुलिसकर्मियों की हत्या की मंशा सिद्ध नहीं होती, हालांकि यह स्पष्ट था कि उन्होंने युवक के साथ मारपीट की थी, जिससे उसकी मृत्यु हुई। अदालत ने इसे गैरइरादतन हत्या की श्रेणी में रखते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 304(1) के अंतर्गत दोषी माना। इस आधार पर अदालत ने उनकी उम्रकैद की सजा को घटाकर 10 वर्ष के कठोर कारावास में बदल दिया।
2016 में पुलिस हिरासत में हुई थी युवक की मौत
पूरा मामला 2016 का है, जब जांजगीर-चांपा जिले के मुलमुला थाना पुलिस ने ग्राम नरियरा निवासी सतीश नोरगे को शराब पीकर हंगामा करने के आरोप में हिरासत में लिया था। गिरफ्तारी के कुछ ही घंटों बाद युवक की हिरासत में ही मौत हो गई। इस घटना के बाद स्थानीय लोगों में आक्रोश फैल गया और पुलिस पर हत्या का आरोप लगाते हुए आंदोलन शुरू हो गया। पुलिस पर एफआईआर की मांग के साथ विरोध प्रदर्शन भी हुए।
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पोस्टमार्टम रिपोर्ट में युवक के शरीर पर मिले थे 26 चोट के निशान
जनता के दबाव में जब युवक का पोस्टमार्टम कराया गया, तो रिपोर्ट में उसके शरीर पर कुल 26 जगह चोट के निशान पाए गए। इसके बाद थाना प्रभारी जितेंद्र सिंह राजपूत, कांस्टेबल सुनील ध्रुव, दिलहरण मिरी और सैनिक राजेश कुमार के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया। सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया।
2019 में विशेष अदालत ने सुनाई थी उम्रकैद
विशेष अदालत ने ट्रायल के बाद साल 2019 में सभी चारों पुलिसकर्मियों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। आरोपियों ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी। वहीं मृतक की पत्नी ने भी न्याय की मांग करते हुए हाईकोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर की थी।

हाईकोर्ट ने हत्या की मंशा नहीं मानी, लेकिन गंभीरता को स्वीकारा
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि पुलिसकर्मियों ने युवक को इस हद तक पीटा जिससे उसकी मौत हो गई, लेकिन उनके पास जान लेने की मंशा नहीं थी। इसलिए अदालत ने मामले को हत्या की श्रेणी से हटाकर गैरइरादतन हत्या माना। यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी जानते थे कि उनकी कार्रवाई के गंभीर परिणाम हो सकते हैं, फिर भी उन्होंने पीटा।
एससी-एसटी एक्ट से मिली आरोपी थाना प्रभारी को राहत
अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि आरोपी पुलिस अधिकारी जानते थे कि मृतक अनुसूचित जाति से था। इसी आधार पर अदालत ने एससी-एसटी एक्ट की धाराओं को इस केस से हटा दिया और थाना प्रभारी को इन धाराओं से बरी कर दिया।
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अब आगे क्या होगा, हाईकोर्ट ने दिया स्पष्ट आदेश
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि दोषी पुलिसकर्मी पहले से ही वर्ष 2016 से जेल में बंद हैं। इसलिए उनकी सजा की गणना करते हुए अब उन्हें कुल 10 साल की कठोर सजा में से शेष अवधि की सजा काटनी होगी। डिवीजन बेंच ने यह भी निर्देश दिया कि फैसले की एक प्रति जेल अधीक्षक को भेजी जाए, ताकि आवश्यक कार्रवाई की जा सके और संबंधित अधिकारियों को इस आधार पर निर्देश दिया जा सके।