छत्तीसगढ़

Bilaspur News: कोर्ट का सब्र टूटा, सुप्रीम कोर्ट से ना के बाद रिव्यू पिटीशन, 50 हजार का जुर्माना

देश की अदालतें पहले से ही मामलों के बोझ से जूझ रही हैं, और ऐसे में बेवजह दायर की जा रही याचिकाएं न्यायिक व्यवस्था पर अतिरिक्त दबाव डाल रही हैं। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इसी गंभीर मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाते हुए एक ऐसे मामले में 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है, जिसे कोर्ट ने फ्रिवोलस लिटिगेशन यानी निरर्थक मुकदमेबाजी करार दिया।

BILASPUR NEWS. देश की अदालतें पहले से ही मामलों के बोझ से जूझ रही हैं, और ऐसे में बेवजह दायर की जा रही याचिकाएं न्यायिक व्यवस्था पर अतिरिक्त दबाव डाल रही हैं। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इसी गंभीर मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाते हुए एक ऐसे मामले में 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है, जिसे कोर्ट ने फ्रिवोलस लिटिगेशन यानी निरर्थक मुकदमेबाजी करार दिया।
हाई कोर्ट ने साफ कहा कि सुप्रीम कोर्ट से एसएलपी खारिज हो जाने के बाद रिव्यू पिटीशन दायर करना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इससे कोर्ट का बहुमूल्य समय नष्ट होता है।
सिस्टम पर बढ़ते बोझ की बानगी
मामला एक सरकारी कर्मचारी से जुड़ा है, जिस पर विभागीय जांच के बाद अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई थी। कर्मचारी ने न्याय की उम्मीद में एक के बाद एक अदालतों का दरवाजा खटखटाया—पहले सिंगल बेंच, फिर डिवीजन बेंच और आखिर में सुप्रीम कोर्ट। हर स्तर पर राहत नहीं मिलने के बावजूद मामला दोबारा हाई कोर्ट तक पहुंच गया।
कोर्ट ने इस प्रवृत्ति को गंभीर बताते हुए कहा कि रिव्यू पिटीशन अपील का विकल्प नहीं हो सकती। बिना किसी स्पष्ट कानूनी त्रुटि के दोबारा सुनवाई की मांग करना व्यवस्था के साथ अन्याय है।
बार और बेंच—दोनों के लिए चेतावनी
कोर्ट ने इस बात पर भी असंतोष जताया कि हर चरण में अलग-अलग वकील बदले गए। बेंच ने टिप्पणी की कि केवल वकील बदलकर नया नतीजा पाने की उम्मीद करना न्यायिक अनुशासन और बार की स्वस्थ परंपराओं के खिलाफ है।
जुर्माने से सामाजिक संदेश
कोर्ट ने शुरू में 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाने पर विचार किया था, लेकिन बिना शर्त माफी को देखते हुए राशि घटाकर 50 हजार रुपये कर दी। खास बात यह रही कि यह रकम गरियाबंद स्थित सरकारी दत्तक ग्रहण एजेंसी को देने के निर्देश दिए गए, ताकि इसका उपयोग अनाथ बच्चों के हित में हो सके।
हाई कोर्ट का स्पष्ट संकेत
फैसले के हेड-नोट में कोर्ट ने दो टूक कहा कि यदि इस तरह की याचिकाओं पर सख्ती नहीं दिखाई गई, तो न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग बढ़ता जाएगा। अदालतों का समय जनता की अमानत है और इसका दुरुपयोग किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा।

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