Bilaspur News:बच्चों की पढ़ाई, बुजुर्गों की नींद पर हमला, शहर की अव्यवस्था पर हाईकोर्ट नाराज
बिलासपुर शहर में आम लोगों की रोजमर्रा की परेशानियां अब न्यायपालिका के दरवाजे तक पहुंच चुकी हैं। परीक्षा के दौरान बढ़ता शोर, रातभर बजते लाउडस्पीकर, कॉलोनियों के रास्ते बंद होना और खुले में कचरा जलाना— इन सबका सीधा असर बच्चों की पढ़ाई, बुजुर्गों की सेहत और नागरिकों की नींद पर पड़ रहा है। हाईकोर्ट ने इन मुद्दों को सिर्फ अव्यवस्था नहीं, बल्कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना है।

BILASPUR NEWS. बिलासपुर शहर में आम लोगों की रोजमर्रा की परेशानियां अब न्यायपालिका के दरवाजे तक पहुंच चुकी हैं। परीक्षा के दौरान बढ़ता शोर, रातभर बजते लाउडस्पीकर, कॉलोनियों के रास्ते बंद होना और खुले में कचरा जलाना— इन सबका सीधा असर बच्चों की पढ़ाई, बुजुर्गों की सेहत और नागरिकों की नींद पर पड़ रहा है। हाईकोर्ट ने इन मुद्दों को सिर्फ अव्यवस्था नहीं, बल्कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना है।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान का अनुच्छेद-21 केवल जीवन का अधिकार नहीं, बल्कि शांतिपूर्ण और गरिमापूर्ण वातावरण में जीने और सोने का अधिकार भी देता है। कोर्ट ने कहा कि यदि नागरिक रातभर शोर और धुएं के कारण सो नहीं पा रहे, तो यह प्रशासन की गंभीर विफलता है।
बच्चों की पढ़ाई बनी सबसे बड़ा मुद्दा
सरकंडा क्षेत्र में गेट लगाकर सड़क बंद किए जाने से स्कूली बच्चों को स्कूल जाने के लिए लंबा रास्ता अपनाना पड़ रहा है। कोर्ट ने इसे केवल सड़क विवाद नहीं, बल्कि बच्चों की शिक्षा प्रभावित करने वाला मामला माना। डिवीजन बेंच ने कहा कि किसी भी निजी व्यक्ति या कॉलोनाइजर को नागरिकों की आवाजाही रोकने का अधिकार नहीं है।
धार्मिक आयोजन हों या सामाजिक कार्यक्रम— कानून सबके लिए बराबर
ओम विहार सहित कई इलाकों में आधी रात से सुबह तक फुल वॉल्यूम में बजते लाउडस्पीकर कोर्ट की चिंता का विषय बने। हाईकोर्ट ने साफ कहा कि धार्मिक आस्था के नाम पर कानून तोड़ने की छूट नहीं दी जा सकती। लोगों की नींद, स्वास्थ्य और मानसिक शांति भी उतनी ही जरूरी है।
धुएं में जीने को मजबूर लोग
कालिका नगर क्षेत्र में रोज कचरा जलाने से फैलने वाला धुआं बच्चों और बुजुर्गों के लिए खतरा बन गया है। कोर्ट ने इसे सिर्फ स्वच्छता का मुद्दा नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य से जुड़ा गंभीर विषय बताया।
खबरें बनीं न्याय की वजह
हाईकोर्ट ने यह भी माना कि स्थानीय अखबारों में प्रकाशित खबरें जनता की आवाज बनकर सामने आईं, जिनके आधार पर समस्याओं पर न्यायिक संज्ञान लिया गया। इससे साफ हुआ कि जब प्रशासन नहीं सुनता, तब लोकतंत्र में मीडिया नागरिकों की आवाज को अदालत तक पहुंचाता है।
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कलेक्टर, कमिश्नर और नगर निगम आयुक्त से व्यक्तिगत शपथपत्र के साथ जवाब मांगा है। अगली सुनवाई 17 दिसंबर को होगी। अब सबकी नजर इस पर है कि प्रशासन नागरिकों की शांति, बच्चों की पढ़ाई और लोगों की सेहत को लेकर क्या ठोस कदम उठाता है।








