Bharat ke do nay ramsar sathal: भारत में रामसर स्थलों की संख्या 96 हुई, दो नई आर्द्रभूमियों को मिली अंतर्राष्ट्रीय मान्यता
Bharat ke do nay ramsar sathal: भारत ने आर्द्रभूमि संरक्षण के क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। हाल ही में दो नई आर्द्रभूमियों को रामसर स्थल के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई है, जिससे देश में रामसर स्थलों की कुल संख्या बढ़कर 96 हो गई है।

Bharat ke do nay ramsar sathal: भारत ने आर्द्रभूमि संरक्षण के क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। हाल ही में दो नई आर्द्रभूमियों को रामसर स्थल के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई है, जिससे देश में रामसर स्थलों की कुल संख्या बढ़कर 96 हो गई है। ये दो नई आर्द्रभूमियां हैं राजस्थान के अलवर जिले में स्थित सिलीसेढ़ झील और छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में स्थित कोपरा जलाशय। इस उपलब्धि के साथ भारत विश्व में सबसे अधिक रामसर स्थलों वाले देशों की सूची में अपना स्थान और मजबूत करता है।

सिलीसेढ़ झील, अलवर (राजस्थान)
सिलीसेढ़ झील राजस्थान के अलवर जिले में अरावली पर्वतमाला की तलहटी में स्थित एक अत्यंत सुंदर मीठे पानी की झील है। इस झील का निर्माण सन् 1845 में महाराजा विनय सिंह द्वारा करवाया गया था। लगभग 10.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली यह झील अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यह झील विविध जलीय जीवों और वनस्पतियों का घर है तथा प्रवासी पक्षियों के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव स्थल के रूप में कार्य करती है। स्थानीय समुदायों के लिए यह झील जल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है और पर्यटन की दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व है। रामसर स्थल का दर्जा मिलने से इस झील के संरक्षण को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता और सुरक्षा प्राप्त हो गई है।
कोपरा जलाशय, बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
कोपरा जलाशय छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले में स्थित एक मानव निर्मित जलाशय है। यह जलाशय मुख्य रूप से सिंचाई के उद्देश्य से बनाया गया था, परंतु समय के साथ यह एक समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में विकसित हो गया है। इस जलाशय में विभिन्न प्रजातियों के पक्षी, मछलियां और अन्य जलीय जीव निवास करते हैं। स्थानीय मछुआरा समुदायों के लिए यह जलाशय आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। छत्तीसगढ़ राज्य के लिए यह एक गौरवपूर्ण उपलब्धि है क्योंकि इससे राज्य की पर्यावरणीय धरोहर को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली है।
रामसर सम्मेलन के बारे में
रामसर सम्मेलन विश्व की सबसे पुरानी अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संधियों में से एक है। इसकी स्थापना 2 फरवरी 1971 को ईरान के रामसर शहर में हुई थी, इसीलिए इसे रामसर सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य विश्व भर की आर्द्रभूमियों का संरक्षण और उनका सतत उपयोग सुनिश्चित करना है। भारत ने इस सम्मेलन पर 1982 में हस्ताक्षर किए थे और तब से लेकर आज तक देश में रामसर स्थलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। प्रतिवर्ष 2 फरवरी को विश्व आर्द्रभूमि दिवस के रूप में मनाया जाता है।
आर्द्रभूमियों का महत्व
आर्द्रभूमियों को पृथ्वी की किडनी कहा जाता है क्योंकि ये जल को प्राकृतिक रूप से शुद्ध करने का कार्य करती हैं। ये पारिस्थितिक तंत्र जैव विविधता के भंडार हैं जहां असंख्य प्रजातियों के पक्षी, मछलियां, उभयचर और अन्य जीव निवास करते हैं। आर्द्रभूमियां बाढ़ नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं क्योंकि ये अतिरिक्त जल को अवशोषित करके बाढ़ की तीव्रता को कम करती हैं। इसके अतिरिक्त ये कार्बन को अवशोषित करके जलवायु परिवर्तन से लड़ने में भी सहायक हैं। आर्थिक दृष्टि से आर्द्रभूमियां मत्स्यन, पर्यटन और कृषि के माध्यम से लाखों लोगों की आजीविका का स्रोत हैं।
सिलीसेढ़ झील और कोपरा जलाशय को रामसर स्थल का दर्जा मिलना भारत की पर्यावरण संरक्षण के प्रति गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह उपलब्धि न केवल इन क्षेत्रों की पारिस्थितिक महत्ता को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता देती है, बल्कि स्थानीय समुदायों के लिए सतत विकास और इको-टूरिज्म के नए अवसर भी खोलती है। भारत का लक्ष्य 100 से अधिक रामसर स्थलों तक पहुंचना है और वर्तमान गति को देखते हुए यह लक्ष्य शीघ्र ही पूरा होता दिखाई दे रहा है। आने वाले समय में और अधिक आर्द्रभूमियों को इस प्रतिष्ठित सूची में शामिल किए जाने की उम्मीद है।








