छत्तीसगढ़
Bilaspur News: 950 ग्राम के प्रीमैच्योर बच्चे को नवजीवन: बिलासपुर के श्री शिशु भवन में मेडिकल चमत्कार
मॉडर्न मेडिकल साइंस और समर्पित चिकित्सकों की मेहनत ने एक बार फिर से असंभव को संभव कर दिखाया है। महज 26 हफ्ते (6 माह) में जन्मे और मात्र 950 ग्राम वजनी प्रीमैच्योर बच्चे को बिलासपुर के श्री शिशु भवन अस्पताल में नई जिंदगी मिली है।

BILASPUR NEWS. मॉडर्न मेडिकल साइंस और समर्पित चिकित्सकों की मेहनत ने एक बार फिर से असंभव को संभव कर दिखाया है। महज 26 हफ्ते (6 माह) में जन्मे और मात्र 950 ग्राम वजनी प्रीमैच्योर बच्चे को बिलासपुर के श्री शिशु भवन अस्पताल में नई जिंदगी मिली है।
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जानकारी के अनुसार, चाम्पा निवासी विवेक काले (अधिकारी, चाम्पा प्रकाश इंडस्ट्रीज) और उनकी पत्नी स्वाति काले (सरकारी स्कूल शिक्षिका) के यहां 21 अप्रैल को समय से पहले प्रसव हुआ। डॉक्टरों ने बताया कि बच्चा बेहद नाजुक स्थिति में था, उसका वजन मात्र 950 ग्राम था और वह ठीक से सांस भी नहीं ले पा रहा था। बच्चे की हालत को देखते हुए चाम्पा की डॉक्टर निहारिका ने उसे तुरंत बिलासपुर स्थित श्री शिशु भवन रेफर कर दिया।
यहां पहुंचने पर डॉक्टरों ने चुनौती स्वीकार करते हुए उसे वेंटिलेटर पर रखा और इलाज शुरू किया। लगभग एक महीने तक बच्चा वेंटिलेटर पर रहा। धीरे-धीरे उसके स्वास्थ्य में सुधार हुआ। उसके फेफड़े विकसित होने लगे और वजन भी बढ़ा।

विश्व स्तरीय सुविधाओं से मिली जिंदगी
डॉ. श्रीकांत गिरी ने बताया कि 26 हफ्ते में जन्मे ऐसे बच्चों को बचा पाना बहुत मुश्किल होता है। बच्चे को सांस लेने में कठिनाई और फेफड़ों के विकास न होने जैसी गंभीर समस्याएं थीं। लेकिन श्री शिशु भवन में विश्व स्तरीय उपकरण उपलब्ध हैं। अमेरिका से आयातित बेबी इनक्यूबेटर और इटली के विशेष वेंटिलेटर सिंक्रोनाइज NIPPV की मदद से इलाज किया गया।
डॉ. रवि द्विवेदी, डॉ. प्रणव अंधारे, डॉ. मोनिका जायसवाल, डॉ. मनोज चंद्राकर, डॉ. चंद्रभूषण देवांगन, डॉ. यशवंत चंद्रा समेत पूरी टीम ने लगातार प्रयास किया। इसी का नतीजा रहा कि बच्चा धीरे-धीरे सामान्य रूप से सांस लेने लगा और स्वस्थ हो गया।
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मदर मिल्क बैंक से मिली मदद
डॉ. गिरी ने बताया कि इस उपचार में यशोदा मदर मिल्क बैंक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। छत्तीसगढ़ में श्री शिशु भवन ही एकमात्र निजी अस्पताल है जहां अपना मदर मिल्क बैंक है। यहां जरूरतमंद प्रीमैच्योर शिशुओं के लिए मां का दूध उपलब्ध कराया जाता है।
करीब 58 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद बच्चे को डिस्चार्ज कर दिया गया। स्वस्थ बच्चे को गोद में लेकर विवेक और स्वाति काले की आंखों में खुशी और आभार छलक उठा।
“यह किसी मेडिकल मिरैकल से कम नहीं”
डॉ. श्रीकांत गिरी ने कहा कि ईश्वर की कृपा, आधुनिक संसाधन और माता-पिता का धैर्य—इन सबने मिलकर इस कठिन लड़ाई को जीता। वहीं, अस्पताल प्रबंधन के नवल वर्मा ने बताया कि यह केस मॉडर्न मेडिकल साइंस और टीमवर्क का बेहतरीन उदाहरण है।