Bilaspur News:खेल पुरस्कारों के चयन में गड़बड़ी का मामला हाईकोर्ट पहुंचा, खेल सचिव व संचालक को नियमानुसार निर्णय लेने के आदेश
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य खेल पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया में नियमों के अनुरूप निर्णय लेने का निर्देश दिया है। यह आदेश कराते प्रशिक्षक मुरलीधर भारद्वाज की याचिका पर सुनवाई के बाद जारी किया गया। भारद्वाज ने चयन प्रक्रिया पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें जानबूझकर अपात्र घोषित किया गया, जबकि अन्य सरकारी सेवकों को इसी श्रेणी में पुरस्कार दिए जा चुके हैं।

BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य खेल पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया में नियमों के अनुरूप निर्णय लेने का निर्देश दिया है। यह आदेश कराते प्रशिक्षक मुरलीधर भारद्वाज की याचिका पर सुनवाई के बाद जारी किया गया। भारद्वाज ने चयन प्रक्रिया पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें जानबूझकर अपात्र घोषित किया गया, जबकि अन्य सरकारी सेवकों को इसी श्रेणी में पुरस्कार दिए जा चुके हैं।
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छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद यह पहला मौका है जब किसी आवेदक ने खेल पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया में गड़बड़ी का मामला हाईकोर्ट में उठाया है। वर्ष 2021-22 के लिए घोषित वीर हनुमान सिंह पुरस्कार के लिए मुरलीधर भारद्वाज ने आवेदन किया था, लेकिन विभाग ने उन्हें “शासकीय विभाग से अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC)” न होने के आधार पर अपात्र ठहरा दिया।
RTI से हुआ खुलासा
भारद्वाज ने तर्क दिया कि शासन के आचरण नियमों में NOC की अनिवार्यता का कोई प्रावधान ही नहीं है। सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मिली जानकारी से भी यह स्पष्ट हुआ कि विभाग के पास इस संबंध में कोई नियम या दस्तावेज उपलब्ध नहीं है।
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चयन प्रक्रिया पर गंभीर सवाल
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि जिन सुदर्शन कुमार सिंह को यह पुरस्कार दिया गया, वे भी नियमों के अनुसार पात्र नहीं थे। पुरस्कार नियमों के तहत प्रशिक्षक के खिलाड़ियों को राष्ट्रीय स्तर पर कम से कम पाँच पदक, जिनमें एक सीनियर वर्ग का होना जरूरी है, जीतना चाहिए। जबकि स्वयं सुदर्शन सिंह ने स्वीकार किया कि उनके खिलाड़ियों ने सीनियर वर्ग में कोई पदक नहीं जीता। इसके बावजूद विभाग ने उन्हें पुरस्कार दे दिया और ब्रोशर में ऐसे खिलाड़ियों के नाम शामिल किए, जो न तो उनके प्रशिक्षणार्थी थे और न ही छत्तीसगढ़ के निवासी।
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हाईकोर्ट की टिप्पणी
हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए कहा कि खेल विभाग को याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर निष्पक्ष और नियमों के अनुरूप निर्णय लेना चाहिए। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि यदि पुरस्कार गलत आधार पर दिया गया है, तो उसे निरस्त किया जा सकता है।