High Court News: हाईकोर्ट ने कहा बेवजह पति पर केस दर्ज कराना क्रूरता, जानें पूरा मामला
बालोद में रहने वाले व्यक्ति की बालोद में ही रहने वाली महिला के साथ 27 अप्रैल 2007 को हिन्दू रीति-रिवाज से विवाह हुआ था। शादी के 7 महीने बाद पत्नी बिना किसी कारण के मायके में जाकर रहने लगी।

HIGH COURT NEWS BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए तलाक के लिए पति ने याचिका दायर की। इस मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को रद करते हुए तलाक को मंजूरी दी है। वहीं कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पति को छोड़कर बेवजह उस पर केस दर्ज करना किसी क्रूरता से कम नहीं है। मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत के बेंच में हुई।
बता दें, बालोद में रहने वाले व्यक्ति की बालोद में ही रहने वाली महिला के साथ 27 अप्रैल 2007 को हिन्दू रीति-रिवाज से विवाह हुआ था। शादी के 7 महीने बाद पत्नी बिना किसी कारण के मायके में जाकर रहने लगी। पति और उसके परिजनों के खिलाफ थाने में आईपीसी की धारा 498 ए के तहत केस भी दर्ज कराया। इन सभी मामलों में कोर्ट ने पति व उसके परिवार को बरी कर दिया था। वहीं पत्नी ने फैमिली कोर्ट में दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए आवेदन दिया था। उसने आरोप लगाया था कि विवाह के कुछ समय बाद पति और उसके परिवार ने उसे परेशान करना शुरू कर दिया।
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गर्भावस्था के दौरान भी उसे प्रताड़ित किया गया। 11 जून 2008 को बेटी का जन्म हुआ। इसके बाद पति ने उसकी देखभाल भी नहीं की। उसने कोर्ट में कहा कि वह पति के साथ रहना चाहती है। वहीं पति ने पत्नी के आरोपों को खारिज किया। उसने कहा कि पत्नी खुद उसे छोड़कर मायके चली गई। उसने पति और उसके परिवार वालों पर दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज किया। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया। पत्नी की अपील को भी सत्र न्यायालय ने खारिज कर दी।
उसने घरेलू हिंसा का मामला भी लगाया। जिसे भी कोर्ट ने खारिज कर दिया। पति ने पत्नी के साथ रहने के लिए कोर्ट में आवेदन दिया। इस पर पत्नी की शर्त थी कि पति अपने माता-पिता को छोड़ दें तभी उसके साथ रहेगी। इसके बाद पति ने आवेदन वापस ले लिया और तलाक की अर्जी दायर की। जिसे फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया। पत्नी ने कोर्ट में भरण-पोषण के लिए अर्जी दी। इसके बाद पति ने तलाक की अर्जी हाईकोर्ट में दायर की।
पति ने कोर्ट में बताई अपनी व्यथा
हाईकोर्ट में अपील याचिका दायर करते हुए पति ने अपनी व्यथा बताई। उन्होंने बताया कि पत्नी 2008 से अलग रह रही है। उसने पुलिस में कई शिकायतें की। पति पर दबाव बनाया कि वह माता-पिता को छोड़कर घर जमाई बन जाए। उसके चरित्र पर भी शक किया गया। हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला दिया कोर्ट ने पाया कि पत्नी ने विवाह को बचाने के लिए कोई कोशिश नहीं की है। उसने पति को बिना कारण के छोड़ दिया था। केस दर्ज कराया। यह क्रूरता है। इस आधार पर हाईकोर्ट ने 28 अप्रैल 2007 को हुए विवाह को शून्य घोषित किया है। साथ ही पति को पत्नी को दो माह के भीतर भरण पोषण 5 लाख रुपये देने आदेश दिया है।