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Puri Rath Yatra: पुरी रथयात्रा कल से शुरू, 58 दिनों में तैयार होते हैं रथ, जानिए क्या होता है यात्रा के बाद इन रथों का?
भगवान जगन्नाथ की विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा कल (27 जून) से शुरू हो रही है। हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को यह यात्रा भव्य परंपरा और धार्मिक उत्साह के साथ निकाली जाती है। भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपने-अपने रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं।

PURI NEWS. भगवान जगन्नाथ की विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा कल (27 जून) से शुरू हो रही है। हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को यह यात्रा भव्य परंपरा और धार्मिक उत्साह के साथ निकाली जाती है। भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपने-अपने रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं।
58 दिनों में बनते हैं रथ
रथयात्रा से दो महीने पहले ही रथों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। करीब 200 से ज्यादा कारीगर 58 दिनों तक दिन-रात मेहनत कर इन विशाल रथों को तैयार करते हैं। रथों के निर्माण में केवल निर्धारित प्रकार की लकड़ी का इस्तेमाल होता है, जो खास तौर पर ओडिशा के जंगलों से लाई जाती है। हर रथ की ऊंचाई, चक्कों की संख्या और रंग अलग-अलग होता है।
नन्दीघोष रथ (भगवान जगन्नाथ): 16 चक्के, लाल-पीला रंग
तालध्वज रथ (बलभद्र): 14 चक्के, लाल-नीला रंग
दर्पदलन रथ (सुभद्रा): 12 चक्के, लाल-काला रंग

यात्रा के बाद क्या होता है रथों का?
जब रथयात्रा समाप्त होती है और भगवान गुंडिचा मंदिर से वापस श्रीमंदिर लौट आते हैं, तब इन रथों को वहीं पास में एक तय स्थान पर रखा जाता है। इसके बाद एक विशेष परंपरा के तहत रथों को नष्ट कर दिया जाता है। लकड़ी के इन टुकड़ों को मंदिर के उपयोग में लाया जाता है, जैसे: अग्नि सेवा के लिए लकड़ी, मंदिर निर्माण और मरम्मत में काम, कुछ लकड़ी श्रद्धालुओं को भी दी जाती है, जो इसे पुण्य का प्रतीक मानकर घर ले जाते हैं।
सुरक्षा और व्यवस्था
इस बार यात्रा को लेकर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है। लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ को संभालने के लिए हजारों पुलिसकर्मी, CCTV और ड्रोन कैमरों की मदद ली जा रही है। पुरी रथयात्रा न सिर्फ एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह भारत की संस्कृति, परंपरा और लोककलाओं का जीवंत उदाहरण भी है।