Bhilai News:मैत्रीबाग पर मंडरा रहा निजीकरण का साया, भिलाई की धरोहर को बचाने सड़क पर उतरने की तैयारी
भिलाई स्टील प्लांट (BSP) प्रबंधन ने भारत–रूस मित्रता की मिसाल और प्रदेश के सबसे बड़े गार्डन मैत्रीबाग को निजी हाथों में देने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। इसके लिए सेल ने रुचि की अभिव्यक्ति (EOI) जारी कर अखबारों में विज्ञापन भी प्रकाशित कर दिया है, ताकि इच्छुक संगठन तय नियमों के तहत गार्डन और चिड़ियाघर का संचालन संभाल सकें।

BHILAI NEWS. भिलाई स्टील प्लांट (BSP) प्रबंधन ने भारत–रूस मित्रता की मिसाल और प्रदेश के सबसे बड़े गार्डन मैत्रीबाग को निजी हाथों में देने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। इसके लिए सेल ने रुचि की अभिव्यक्ति (EOI) जारी कर अखबारों में विज्ञापन भी प्रकाशित कर दिया है, ताकि इच्छुक संगठन तय नियमों के तहत गार्डन और चिड़ियाघर का संचालन संभाल सकें।
निजीकरण की खबर सामने आते ही यूनियनों, जनप्रतिनिधियों और आम नागरिकों में नाराजगी बढ़ती जा रही है। लोगों का कहना है कि यदि संचालन प्राइवेट सेक्टर को दिया गया तो टिकट शुल्क से लेकर अन्य सुविधाओं का खर्च बढ़ जाएगा, जिसका सीधा असर पब्लिक की जेब पर पड़ेगा।
1972 से बना आकर्षण—सफेद बाघों की नर्सरी
करीब 140 एकड़ में फैला मैत्रीबाग, 1972 में भारत–सोवियत मैत्री के प्रतीक के रूप में स्थापित किया गया था। यहां मौजूद चिड़ियाघर देश का एकमात्र जू माना जाता है जिसे ‘व्हाइट टाइगर नर्सरी’ कहा जाता है। यहां से अब तक इंदौर, गुजरात, बंगाल सहित देश के कई राज्यों में सफेद बाघ भेजे जा चुके हैं। देश–विदेश के दुर्लभ पशु-पक्षी भी यहां आकर्षण का केंद्र हैं।
विधायक देवेंद्र यादव का आरोप—‘शिक्षा, स्वास्थ्य के बाद अब गार्डन भी बेचने की तैयारी’
भिलाई विधायक देवेंद्र यादव ने निजीकरण के प्रयासों पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि केंद्र सरकार पब्लिक सेक्टर के निजीकरण को लगातार बढ़ावा दे रही है। उन्होंने कहा—सेल ने धीरे-धीरे पूरे प्लांट का निजीकरण कर दिया। अब शिक्षा, स्वास्थ्य के बाद इकलौते गार्डन को भी नहीं छोड़ा जा रहा। हम इसका पुरजोर विरोध करेंगे।
यूनियन का विरोध—‘मैत्रीबाग प्राइवेट हाथों में गया तो खो जाएगी पहचान’
बीएसपी यूनियन सीटू के उपाध्यक्ष डी.वी.एस. रेड्डी ने कहा कि निजीकरण के बाद लोगों पर आर्थिक बोझ बढ़ना तय है।
उन्होंने कहा— मैत्रीबाग बनाने का विचार उन अधिकारियों का था जिन्होंने प्लांट खड़ा किया। यह मध्य भारत की पहचान है। इसे निजी हाथों में देने पर इसकी पहचान खतरे में पड़ जाएगी।” मैत्रीबाग के निजीकरण को लेकर अब बहस तेज हो गई है। अगले कुछ दिनों में यह मुद्दा भिलाई में बड़ा राजनीतिक और सामाजिक विवाद बन सकता है।





