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New Delhi News:स्कूल, बस स्टैंड और अस्पतालों से हटेंगे आवारा कुत्ते सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश

देशभर में आवारा कुत्तों द्वारा काटने की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने रेलवे स्टेशन, बस अड्डे, अस्पताल और शैक्षणिक संस्थानों के आसपास से आवारा कुत्तों को हटाकर डॉग शेल्टर होम में स्थानांतरित करने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए नोडल अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी, जो यह सुनिश्चित करेगा कि कुत्ते दोबारा इन क्षेत्रों में न लौटें।

NEWS DELHI NEWS. देशभर में आवारा कुत्तों द्वारा काटने की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने रेलवे स्टेशन, बस अड्डे, अस्पताल और शैक्षणिक संस्थानों के आसपास से आवारा कुत्तों को हटाकर डॉग शेल्टर होम में स्थानांतरित करने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए नोडल अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी, जो यह सुनिश्चित करेगा कि कुत्ते दोबारा इन क्षेत्रों में न लौटें।

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इस फैसले के बाद सुनवाई में उपस्थित सुप्रीम कोर्ट की वकील और याचिकाकर्ता ननिता शर्मा भावुक हो गईं और कैमरे के सामने रो पड़ीं। उन्होंने कहा कि यह आदेश पहले पारित आदेश जैसा ही है, लेकिन वे पशु संरक्षण के भावनात्मक पहलू को लेकर चिंता व्यक्त करती हैं।

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ननिता शर्मा ने कहा—हम न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हैं, पर उम्मीद है कि इन बेजुबान जानवरों के साथ अमानवीय व्यवहार नहीं होगा। एबीसी (पशु जन्म नियंत्रण) नियमों में कुत्तों का पुनर्वास प्रतिबंधित है, लेकिन इसे काटने की घटनाओं के आधार पर उचित ठहराया गया। आश्रय गृहों की गुणवत्ता और उनके रखरखाव पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।”

सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय स्वत: संज्ञान में लिया था, जब दिल्ली में कुत्तों के काटने और रेबीज से मौत से संबंधित मीडिया रिपोर्ट सामने आई। अदालत ने कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर कुत्तों का बढ़ता खतरा चिंताजनक है और उस पर तत्काल कदम उठाया जाना आवश्यक है।

सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्देश:

  • रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, स्कूल, कॉलेज और अस्पतालों के परिसर में आवारा कुत्तों की मौजूदगी नहीं होगी।
  • कुत्तों को पकड़कर डॉग शेल्टर होम में रखा जाएगा और उनकी देखभाल सुनिश्चित की जाएगी।
  • स्थानीय प्रशासन संयुक्त अभियान दल गठित करेगा।
  • नोडल अधिकारी निगरानी करेगा कि कुत्ते वापस सार्वजनिक संस्थानों में न आएँ।

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यह मामला अब एबीसी नियमों, पशु अधिकारों और सार्वजनिक सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने की महत्वपूर्ण कानूनी और मानवीय बहस का विषय बन गया है।

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