छत्तीसगढ़

High court:हाईकोर्ट का बड़ा फैसला कहा POCSO Act में यौन उत्पीड़न में शारीरिक चोट दिखाना जरूरी नहीं

HIGH COURT BILAPSUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पास्को एक्ट अधिनियम के तहत एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने फैसले में कहा है कि दोष सिद्धि पीडित की गवाही पर आधारित हो सकती है। पास्को एक्ट में यौन उत्पीड़न स्थापित करने शारीरिक चोंट दिखाना जरूरी नहीं है। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रवीन्द्र कुमार अग्रवाल के बेंच में हुई।

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बता दें, वर्ष 2020 मई में रायगढ़ जिले के एक गांव में 9 वर्षीय नाबालिग बच्ची प्राथमिक विद्यालय के पास खेल रही थी। पुलिस की पोशाक जैसी खाकी वर्दी पहने आरोपी ने पीड़िता से संपर्क किया और पुलिस कर्मी होने का दिखावा करते हुए उसे जबरन मोटरसाइकिल पर अगवा कर लिया। पीड़िता को एक सुनसान खेत में ले जाया गया। जहां आरोपी ने उसका यौन उत्पीड़न किया।

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उस दिन बाद में पुलिस आधिकारियों ने उसे रोती पीड़िता को साथ ले जाते पकड़ लिया। पीड़िता के पिता ने लिखित शिकायत दर्ज करायी और पुलिस ने तमनार पुलिस स्टेशन में दर्ज प्राथमिकी के तहत आरोपी गको गिरफ्तार किया। आरोपी को जिला न्यायालय में आजीवन कारावास की सजा दी गई। इस फैसले को चुनौती देते हुए कोर्ट में आरोपी अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट में अपील की।

आरोपी को और यौन उत्पीड़न के लिए अजीत सिंह पोर्ते की दोषसिद्धि को बरकरार रखा है। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि पीड़ित की गवाही, पुष्ट साक्ष्य द्वारा समर्थित, यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के तहत दोष सिद्धि के लिए पर्याप्त थी आजीवन कारावास की सजा को 20 वर्ष के कठोर कारावास में बदल दिया है।

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साक्ष्य के लिए पीड़िता की गवाही ही सहायक
कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि साक्ष्य के तौर पर पीड़िता का बयान ही साक्ष्य होता है जो दोष सिद्धि के लिए ही पर्याप्त होता है। घटना के समय नाबालिग 9 वर्ष की थी प्राथमिक जांच में शारीरिक चोट के निशान नहीं मिले। इस पर कोर्ट ने कहा कि पास्को एक्ट के तहत मामलों में पीड़ित को चोट दिखाने की आवश्यकता नहीं है।

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