छत्तीसगढ़

नक्सलवाद का अंत: अमित शाह की रणनीति से डेढ़ साल में ढहा लाल साम्राज्य

चार महीनों में 750 से अधिक नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, और अब नक्सलवाद के खात्मे की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक जीत की पूरी कहानी और इसे कैसे हासिल किया गया।

Cg Breaking बीजापुर: छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ निर्णायक जीत. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अचूक रणनीति ने डेढ़ साल से भी कम समय में नक्सलियों के पांच दशक पुराने लाल साम्राज्य को ध्वस्त कर दिया। ऑपरेशन कुर्रगुट्टा के तहत नक्सलियों के सबसे मजबूत गढ़ कुर्रगुट्टा पहाड़ पर स्थित हेडक्वार्टर को नेस्तनाबूद कर उनकी गुरिल्ला आर्मी बटालियन-1 को पूरी तरह छिन्न-भिन्न कर दिया गया। इस अभियान की सफलता के बाद छत्तीसगढ़ समेत देश के किसी भी राज्य में नक्सलियों के लिए कोई सुरक्षित ठिकाना नहीं बचा है। चार महीनों में 750 से अधिक नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, और अब नक्सलवाद के खात्मे की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक जीत की पूरी कहानी और इसे कैसे हासिल किया गया।

अमित शाह की रणनीति: नक्सलवाद पर अंतिम प्रहार

जब जनवरी 2024 में छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार बनी, तब अमित शाह ने नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने की रणनीति को हरी झंडी दी। उनकी रणनीति का केंद्र था—फॉरवर्ड ऑपरेशनल बेस (एफओबी) की स्थापना और सुरक्षा ग्रिड के जरिए नक्सल प्रभावित इलाकों में सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को पहुंचाना। इस रणनीति ने नक्सलियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया, और डेढ़ साल से कम समय में उनका सबसे मजबूत किला कुर्रगुट्टा पहाड़ ढह गया।

ऑपरेशन कुर्रगुट्टा की सफलता: 21 अप्रैल 2025 को शुरू हुए इस 21-दिवसीय ऑपरेशन की बारीकियों को अमित शाह ने स्वयं परखा। सीआरपीएफ और राज्य पुलिस के संयुक्त अभियान ने नक्सलियों की गुरिल्ला बटालियन को छोटी-छोटी टुकड़ियों में बांट दिया, जिससे वे भागने को मजबूर हो गए।

एफओबी का जाल: 2024 से अब तक 100 से अधिक एफओबी बनाए गए, जिनमें से 85 का लक्ष्य इस साल पूरा किया जा रहा है। ये एफओबी नक्सलियों के गढ़ में सुरक्षा बलों की मौजूदगी को मजबूत करते हैं और स्थानीय लोगों तक विकास योजनाएं पहुंचाते हैं।

नक्सलियों का बिखरता साम्राज्य: क्या हुआ बदलाव?

नक्सलियों का खौफ, जो कभी छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, ओडिशा, तेलंगाना और महाराष्ट्र में फैला था, अब खत्म होने की कगार पर है। अमित शाह की रणनीति ने नक्सलियों को न केवल उनके गढ़ से बेदखल किया, बल्कि उनके बड़े नेताओं को भी अलग-थलग कर दिया।

नक्सली नेताओं की हालत: माना जा रहा है कि नक्सलियों के शीर्ष नेता अब छिपने को मजबूर हैं। सुरक्षा एजेंसियां उनकी गतिविधियों पर नजर रख रही हैं और जरूरत पड़ने पर तत्काल ऑपरेशन की तैयारी में हैं।

आत्मसमर्पण की लहर: 2024 में 900 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था, और 2025 के पहले चार महीनों में ही 750 से अधिक नक्सली हथियार डाल चुके हैं। आने वाले समय में यह संख्या और बढ़ने की उम्मीद है।

पहले भी टूटे नक्सली गढ़: बूढ़ा पहाड़ और चक्रबंधा

अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद नक्सल विरोधी अभियानों में अभूतपूर्व तेजी आई। 2023 में झारखंड के बूढ़ा पहाड़ और बिहार के चक्रबंधा पहाड़ को नक्सलियों से मुक्त कराया गया। ये दोनों इलाके नक्सलियों के लिए अभेद्य किले माने जाते थे, लेकिन शाह की रणनीति ने इन्हें ध्वस्त कर दिया।

एफओबी की भूमिका: 2014 तक केवल 65 एफओबी बने थे, लेकिन 2014 से 2024 तक 565 एफओबी तैयार किए गए, जिनमें से अधिकांश शाह के कार्यकाल में बने। कुर्रगुट्टा के पास फरवरी-मार्च 2025 में तीन नए एफओबी बनाए गए, जिन्होंने ऑपरेशन की सफलता में अहम भूमिका निभाई।

नक्सलवाद के खात्मे की समयसीमा: मार्च 2026

शुरुआत में अनुमान था कि नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म करने में 2.5 से 3 साल लगेंगे। लेकिन ऑपरेशन की शुरुआती सफलता को देखते हुए अगस्त 2024 में अमित शाह ने नक्सलवाद के खात्मे की समयसीमा 31 मार्च 2026 तय की। कुर्रगुट्टा की जीत के बाद सुरक्षा बलों का हौसला सातवें आसमान पर है, और माना जा रहा है कि यह लक्ष्य समय से पहले हासिल हो सकता है।

नक्सलियों में हताशा: निचले कैडर के नक्सलियों में भारी हताशा है, जिसके चलते बड़े पैमाने पर आत्मसमर्पण की संभावना बढ़ गई है। सरकार ने आत्मसमर्पण करने वालों के लिए पुनर्वास योजनाएं भी शुरू की हैं।

अमित शाह का नेतृत्व: लगातार निगरानी और निर्देश

ऑपरेशन कुर्रगुट्टा के दौरान अमित शाह ने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ लगातार संपर्क बनाए रखा और जरूरी निर्देश दिए। उनकी रणनीति में न केवल सैन्य कार्रवाई, बल्कि स्थानीय लोगों का भरोसा जीतना भी शामिल था। जनकल्याणकारी योजनाओं को नक्सल प्रभावित इलाकों में पहुंचाकर सरकार ने लोगों को नक्सलियों के प्रभाव से मुक्त किया।

सुरक्षा ग्रिड का विस्तार: एफओबी के जरिए सुरक्षा ग्रिड को मजबूत किया गया, जिसने नक्सलियों को चारों ओर से घेर लिया.

नक्सलवाद के खिलाफ भारत की जीत: भविष्य क्या?

कुर्रगुट्टा की जीत नक्सलवाद के खिलाफ भारत की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। यह न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे देश के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। नक्सलियों के पास अब न तो कोई मजबूत गढ़ बचा है और न ही उनकी गुरिल्ला ताकत। अमित शाह की रणनीति ने साबित कर दिया कि दृढ़ इच्छाशक्ति और सटीक योजना से कोई भी चुनौती छोटी हो सकती है।

आत्मसमर्पण और पुनर्वास: सरकार अब आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए पुनर्वास पर जोर दे रही है, ताकि वे मुख्यधारा में शामिल हो सकें।

 नक्सल मुक्त भारत की ओर

ऑपरेशन कुर्रगुट्टा और अमित शाह की रणनीति ने नक्सलवाद को उसकी जड़ों से उखाड़ फेंका है। 750 से अधिक नक्सलियों का आत्मसमर्पण और कुर्रगुट्टा पहाड़ की जीत इस बात का सबूत है कि भारत अब नक्सल मुक्त होने की राह पर तेजी से बढ़ रहा है। मार्च 2026 तक नक्सलवाद का पूरी तरह खात्मा हो सकता है, और यह भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी।

आप क्या सोचते हैं? नक्सलवाद के खिलाफ इस जीत पर अपनी राय कमेंट में शेयर करें और इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ साझा करें, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस ऐतिहासिक क्षण के बारे में जान सकें।

 

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