परमाणु डर और रणनीति: भारत-पाकिस्तान के रिश्तों का विस्फोटक सच,परमाणु हथियारों को कैसे रखा जाता है
भारत की परमाणु नीति स्पष्ट है—पहले इस्तेमाल नहीं। इसका मतलब है कि भारत कभी पहले परमाणु हथियार का उपयोग नहीं करेगा, लेकिन अगर उस पर हमला हुआ तो जवाबी कार्रवाई इतनी ताकतवर होगी कि दुश्मन की कमर टूट जाए।

भारत-पाकिस्तान परमाणु नीति: तनाव और रणनीति की कहानी
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की हर गूंज में एक शब्द बार-बार उभरता है—परमाणु हथियार। दोनों देशों के पास ये विनाशकारी शक्ति है, लेकिन इनका इस्तेमाल करने की नीति और सोच एक-दूसरे से बिल्कुल अलग है। जहां भारत जवाबी कार्रवाई की नीति पर चलता है, वहीं पाकिस्तान ने पहले हमले की रणनीति को अपनाया है। इस अंतर ने न केवल दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ाया है, बल्कि वैश्विक मंच पर भी चिंता का सबब बना हुआ है। आइए, इस जटिल और रोमांचक कहानी को समझते हैं, जिसमें रणनीति, धमकियां और ऐतिहासिक बयानबाजी का मिश्रण है।
परमाणु नीति: भारत का जवाबी रुख बनाम पाकिस्तान की धमकी
भारत की परमाणु नीति स्पष्ट है—पहले इस्तेमाल नहीं। इसका मतलब है कि भारत कभी पहले परमाणु हथियार का उपयोग नहीं करेगा, लेकिन अगर उस पर हमला हुआ तो जवाबी कार्रवाई इतनी ताकतवर होगी कि दुश्मन की कमर टूट जाए। 1999 में बनी इस नीति को भारत ने बार-बार दोहराया है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक, सभी ने इस नीति को देश की संप्रभुता का आधार बताया है। हालांकि, 2019 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संकेत दिया था कि भविष्य में परिस्थितियों के आधार पर इस नीति में बदलाव हो सकता है, जिसने विश्लेषकों के कान खड़े कर दिए।
दूसरी ओर, पाकिस्तान की कोई लिखित परमाणु नीति नहीं है, लेकिन उसकी रणनीति पहले इस्तेमाल पर टिकी है। पाकिस्तान का मानना है कि अगर उसकी सुरक्षा को खतरा हुआ या उसका अस्तित्व दांव पर लगा, तो वह परमाणु हथियारों का उपयोग करने से नहीं हिचकेगा। भारत इसे “न्यूक्लियर ब्लैकमेल” कहता है। पाकिस्तान की इस नीति का आधार उसकी पारंपरिक सैन्य ताकत में भारत से पिछड़ना है। विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान परमाणु हथियारों की धमकी देकर भारत की सैन्य कार्रवाइयों को रोकने की कोशिश करता है।
हालिया तनाव और मोदी का कड़ा संदेश
13 मई 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया। पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत के बाद भारत ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में 9 ठिकानों पर हवाई हमले किए। मोदी ने कहा, “भारत न्यूक्लियर ब्लैकमेल नहीं सहेगा। आतंक की जड़ों को उखाड़ने के लिए हम हर जगह सटीक और निर्णायक प्रहार करेंगे।” यह बयान न केवल भारत की आक्रामक रणनीति को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारत अब पाकिस्तान की परमाणु धमकियों को गंभीरता से नहीं ले रहा।
यह पहली बार नहीं है जब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की है। 2016 में उरी हमले के बाद भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी, और 2019 में पुलवामा हमले के बाद बालाकोट में हवाई हमले किए थे। इन कार्रवाइयों ने सवाल उठाया है—क्या पाकिस्तान की परमाणु धमकी अब उतनी असरदार है? विश्लेषकों का मानना है कि भारत ने बार-बार पाकिस्तान के न्यूक्लियर थ्रैशोल्ड को परखा है, और अब यह धमकी पहले जैसी प्रभावी नहीं रही।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: परमाणु दौड़ की शुरुआत
भारत और पाकिस्तान की परमाणु कहानी 1970 के दशक से शुरू होती है। 1974 में भारत ने “स्माइलिंग बुद्धा” परीक्षण के साथ अपनी परमाणु क्षमता का प्रदर्शन किया। जवाहरलाल नेहरू ने पहले ही कह दिया था कि भारत परमाणु हथियारों की निंदा करता है, लेकिन अगर मजबूर किया गया तो अपनी रक्षा के लिए वैज्ञानिक ज्ञान का इस्तेमाल करेगा। दूसरी ओर, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने 1965 में कहा था, “अगर भारत बम बनाएगा, तो हम भूखे रहकर भी अपना बम बनाएंगे।”
1998 में भारत ने “ऑपरेशन शक्ति” के तहत पोखरण में परमाणु परीक्षण किए, जिसके जवाब में पाकिस्तान ने “चगई-1” और “चगई-2” परीक्षणों के साथ अपनी ताकत दिखाई। तब से दोनों देशों के बीच परमाणु हथियारों की होड़ और बयानबाजी का सिलसिला जारी है।
पाकिस्तान की बयानबाजी: धमकी या रणनीति?
पाकिस्तान के नेताओं ने समय-समय पर परमाणु हथियारों को लेकर आक्रामक बयान दिए हैं। 2000 में तत्कालीन विदेश मंत्री शमशाद अहमद ने कहा था, “अगर पाकिस्तान पर हमला हुआ, तो हम हर हथियार का इस्तेमाल करेंगे।” 2013 में पाकिस्तान के स्ट्रेटेजिक प्लान्स डिवीजन के पूर्व महानिदेशक खालिद किदवई ने फुल स्पेक्ट्रम डेटेरेंस सिद्धांत पेश किया, जिसमें स्ट्रेटेजिक, ऑपरेशनल और टैक्टिकल हथियारों का जिक्र था। उनका दावा था कि ये हथियार भारत के किसी भी हिस्से को निशाना बना सकते हैं।
हाल ही में पाकिस्तान के रेल मंत्री मोहम्मद हनीफ अब्बासी ने कहा, “हमारी परमाणु मिसाइलें सजावट के लिए नहीं हैं। गौरी, शाहीन और गजनवी मिसाइलें भारत के लिए ही बनाई गई हैं।” ये बयान दिखाते हैं कि पाकिस्तान अपनी परमाणु ताकत को भारत के खिलाफ मनोवैज्ञानिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है।
भारत की संयमित लेकिन सख्त नीति
भारत के नेताओं ने भी परमाणु हथियारों को लेकर बयान दिए हैं, लेकिन इनमें संयम और रक्षा की भावना झलकती है। 1974 में इंदिरा गांधी ने पोखरण परीक्षण को शांतिपूर्ण बताया था। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा, “हमारी परमाणु ताकत आक्रामकता रोकने के लिए है। हम पहले इस्तेमाल नहीं करेंगे, लेकिन न्यूनतम परमाणु हथियार रखेंगे।” नरेंद्र मोदी ने 2019 में इसे दोहराते हुए कहा, “हमारी परमाणु क्षमता हमारी संप्रभुता की गारंटी है।”
परमाणु हथियारों की संख्या: कितनी है ताकत?
आधिकारिक तौर पर भारत और पाकिस्तान अपनी परमाणु हथियारों की संख्या का खुलासा नहीं करते। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के 2024 के आकलन के मुताबिक, भारत के पास 172 और पाकिस्तान के पास 170 परमाणु हथियार हैं। अमेरिकन फेडरेशन ऑफ साइंटिस्ट्स का अनुमान है कि भारत के पास 180 और पाकिस्तान के पास 170 हथियार हैं।
लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि परमाणु हथियारों में संख्या से ज्यादा उनकी विनाशकारी क्षमता मायने रखती है। डॉ. मुनीर अहमद कहते हैं, “एक छोटा परमाणु हथियार भी भारी तबाही मचा सकता है। अगर इनका इस्तेमाल हुआ, तो दोनों देश पारस्परिक विनाश की ओर बढ़ेंगे।”
चेन ऑफ कमांड: कौन देगा आदेश?
भारत और पाकिस्तान में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का निर्णय लेने की प्रक्रिया भी अलग है। भारत में न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी (NCA) है, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। इसमें सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, सेना प्रमुख और परमाणु वैज्ञानिक शामिल हैं। स्ट्रेटेजिक फोर्सेज कमांड (SFC) हथियारों के रखरखाव और संचालन का जिम्मा संभालती है। निर्णय अंततः नागरिक नेतृत्व लेता है।
पाकिस्तान में भी नेशनल कमांड अथॉरिटी (NCA) है, जिसके चेयरमैन प्रधानमंत्री हैं, लेकिन सेना का प्रभाव ज्यादा है। स्ट्रेटेजिक प्लान्स डिवीजन और स्ट्रेटेजिक फोर्सेज कमांड हथियारों का प्रबंधन करते हैं। विश्लेषक मानते हैं कि पाकिस्तान में सेना ही अंतिम निर्णय ले सकती है।
परमाणु हथियारों का रखरखाव
भारत और पाकिस्तान दोनों अपने परमाणु हथियारों को सुरक्षित ठिकानों पर रखते हैं। हथियारों के दो हिस्से—वॉरहेड और डिलीवरी सिस्टम (मिसाइल)—अलग-अलग रखे जाते हैं। कुछ हथियार तुरंत इस्तेमाल के लिए तैयार रहते हैं। लेकिन दोनों देशों के बीच कम दूरी के कारण यह अंतर ज्यादा मायने नहीं रखता। डॉ. राजीव नयन कहते हैं, “एयर डिफेंस सिस्टम सैद्धांतिक रूप से मिसाइल को रोक सकता है, लेकिन व्यावहारिक रूप से यह मुश्किल है।”
क्या है भविष्य?
भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु तनाव की कहानी जटिल है। जहां भारत संयम और जवाबी कार्रवाई पर जोर देता है, वहीं पाकिस्तान की धमकियां क्षेत्रीय स्थिरता के लिए चुनौती बनी हुई हैं। विश्लेषकों का मानना है कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल दोनों देशों के लिए विनाशकारी होगा, और यही डर दोनों को संयम बरतने के लिए मजबूर करता है। लेकिन सवाल यह है—क्या यह संयम हमेशा कायम रहेगा?