High Court Bilaspur: हाईकोर्ट ने ट्रांसमिशन टावर निर्माण पर रोक से किया इनकार, मुआवजा देने का आदेश
बिजली ट्रांसमिशन लाइनों को बिछाने के लिए भूमि मालिक की पूर्व सहमति आवश्यक नहीं है। इन लाइनों को बिछाना व्यापक सार्वजनिक हित में है, जो राष्ट्र के विकास और वृद्धि के लिए आवश्यक है।

HIGH COURT BILASPUR NEWS. बिजली ट्रांसमिशन लाइनों को बिछाने के लिए भूमि मालिक की पूर्व सहमति आवश्यक नहीं है। इन लाइनों को बिछाना व्यापक सार्वजनिक हित में है, जो राष्ट्र के विकास और वृद्धि के लिए आवश्यक है। भूमि मालिक केवल मुआवजे का हकदार है। किसान की कृषि भूमि पर गड्ढे कर ट्रांसमिशन टावरों का निर्माण कराया जा रहा है, इसे लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने निर्माण कार्य पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही याचिकाकर्ता को दो माह में मुआवजा वितरित करने कहा है।
बता दें, जांजगीर जिले के बलौदा तहसील क्षेत्र के कोरबी में रहने वाले याचिकाकर्ता जयकुमार अग्रवाल की 8.73 एकड़ कृषि भूमि का मालिक है, जिस पर सीएसपीटीसीएल ने 16 बड़े गड्ढे खोद दिए। उक्त भूमि पर बिना किसी पूर्व सूचना, सहमति या राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए अनुमोदन आदेश 11मार्च 2024 की अनिवार्य शर्तों का अनुपालन किए ट्रांसमिशन टावरों का निर्माण शुरू कर दिया। याचिकाकर्ता ने इसके बाद हाईकोर्ट की शरण ली। जिसमें कहा गया कि, प्रतिवादी सीएसपीटीसीएल को निर्देश दिया जा सकता है, कि वह याचिकाकर्ता की भूमि पर ट्रांसमिशन टावर के निर्माण के लिए उक्त भूमि पर निर्माण कार्य को तुरंत रोक दे।
मामले में जस्टिस अमितेश किशोर प्रसाद ने सुनवाई हुई। कोर्ट ने माना कि, वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानूनी मिसालों के मद्देनजर, यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि बिजली ट्रांसमिशन लाइनों की स्थापना के लिए भूमि मालिक की पूर्व सहमति आवश्यक नहीं है। ऐसी लाइनों को बिछाना व्यापक सार्वजनिक हित में है, जो राष्ट्र के विकास और वृद्धि के लिए आवश्यक है। भूमि मालिक केवल मुआवजे का हकदार है, निषेधाज्ञा का नहीं। बिजली के संचरण के लिए ट्रांसमिशन टावरों के निर्माण के उनके प्रयासों में अधिकारियों को बाधा नहीं डाली जा सकती।
कोर्ट ने प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता के साथ सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता को पर्याप्त मुआवजा प्रदान करने का निर्देश दिया, और संबंधित अधिकारियों को इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तिथि से 60 दिनों के भीतर याचिकाकर्ता को मुआवजा वितरित करने का निर्देश भी दिया गया है।