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Holika Dahan 2025: भारत के इस राज्य में सबसे पहले हुआ था होलिका दहन, जानें यहां की अनोखी होली परंपरा

होलिका दहन की परंपरा भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और उसके पिता हिरण्यकश्यप की कथा से जुड़ी है। मान्यता के अनुसार, हिरण्यकश्यप की बहन होलिका प्रह्लाद को जलाने के लिए उसे गोद में लेकर अग्नि में बैठी थी।sabse pahle Holi kaha manai gayi thi.

Holika Dahan 2025: होली का त्यौहार भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले होलिका दहन भारत के किस राज्य में हुआ था? अगर आप भारत की परंपराओं और ऐतिहासिक स्थलों को एक्सप्लोर करने के शौकीन हैं, तो आपको इस राज्य के बारे में जरूर पता होना चाहिए।

Holika dahan 2025

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होलिका दहन का महत्व और तिथि

छोटी होली या होलिका दहन हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। 2025 में होलिका दहन गुरुवार, 13 मार्च को मनाया जाएगा। इस दिन लोग पवित्र अग्नि जलाकर पूजा करते हैं और अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए होलिका दहन करते हैं। शाम को होलिका दहन के दौरान भक्तजन अग्नि की परिक्रमा कर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

क्यों किया जाता है होलिका दहन?

होलिका दहन की परंपरा भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और उसके पिता हिरण्यकश्यप की कथा से जुड़ी है। मान्यता के अनुसार, हिरण्यकश्यप की बहन होलिका प्रह्लाद को जलाने के लिए उसे गोद में लेकर अग्नि में बैठी थी, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका जलकर भस्म हो गई। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में होलिका दहन किया जाता है।

भारत में सबसे पहले कहां हुआ था होलिका दहन?

ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार, सबसे पहला होलिका दहन बिहार में हुआ था। श्रीमद् भागवत और स्कंद पुराण के अनुसार, पूर्णिया जिले के बनमनखी स्थित सिकलीगढ़ धरहरा गांव को होलिका दहन की उत्पत्ति का स्थल माना जाता है। मान्यता है कि यहीं भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी और हिरण्यकश्यप का वध किया था।

बिहार में कैसे मनाया जाता है होलिका दहन?

बिहार में होलिका दहन को विशेष रूप से पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है। इस दिन घरों में विशेष पकवान बनाए जाते हैं, खासतौर पर पकौड़े बनाए जाते हैं, जिन्हें होलिका की अग्नि में चढ़ाया जाता है। इस दौरान लोग ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते-गाते हैं और होलिका दहन का उत्सव मनाते हैं।

बिहार की होली: फगुआ के बिना अधूरी

बिहार में होली को “फगुआ” या “फाल्गुनोत्सव” के नाम से भी जाना जाता है। यहां के लोग सुबह से ही रंगों से होली खेलते हैं और शाम को अबीर-गुलाल लगाकर खुशियां मनाते हैं।

बिहार में होली की खास परंपराएं:

बसीऔरा: कई इलाकों में होली का उत्सव अगले दिन भी मनाया जाता है, जिसे “बसीऔरा” कहा जाता है।

फगुआ के गीत: बिहार में होली के दौरान विशेष फगुआ गीत गाए जाते हैं, जो त्योहार का मुख्य आकर्षण होते हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में धूमधाम: गांवों में होली के दिन विशेष भोज का आयोजन किया जाता है और भजन-कीर्तन, नृत्य और पारंपरिक खेल खेले जाते हैं।

फगुआ: बिहार, झारखंड और यूपी में लोकप्रिय होली गीत

बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में फगुआ गीतों के बिना होली अधूरी मानी जाती है। भारतीय पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इस पर्व को फाल्गुनोत्सव भी कहा जाता है।

भारत में होली सिर्फ रंगों का नहीं, बल्कि परंपराओं, आस्था और उल्लास का पर्व है। बिहार में फगुआ की धुन और बसीऔरा की परंपरा इसे और खास बनाती है। अगर आप भारत की अनोखी होली को करीब से देखना चाहते हैं, तो बिहार जरूर जाएं और फगुआ के रंगों में सराबोर हो जाएं!

 

 

 

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